Shri Shani Chalisa Lyrics in Hindi with Meaning
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
( हे भगवान् गणेश जिनके लिए ऊँचे से ऊँचा पहाड़ एक नरम फूल की तरह है, कृपया अपनी दया दिखाएं।
दुखों से परेशां अपने भक्तों के दुखों को नष्ट करें और हम सब की चेतना का विस्तार करें॥
हे दयालु शनि देव – मेरी प्रार्थनाओं को सुनें, हे विजयी महाराज।
अपनी दयालुता दिखाएं और अपने भक्तों के विनम्रता और शुद्धता की रक्षा करें॥ )
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥
( जय हो आपकी, हे दयालु शनि देव।
आप हमेशा ही अपने शरण में आये भक्तों को शाश्वत आश्रय प्रदान करते हैं॥
आपकी चार भुजाएं हैं और सुंदर काले रंग की त्वचा।
और आपका माथा मोतियों से बने हुए एक मुकुट से सजा हुआ है॥
आप एक प्रभावशाली व्यक्तित्व और एक विशाल और उज्वल भाल के स्वामी हैं।
आपके चेहरे पर भयानक भ्रूभंग और एक हत्यारे की अभिव्यक्ति है॥
आपके कानों में लगी बालियां प्रकाश में चमकती हैं।
और बिलकुल इसी तरह आपके गले में लगी हुई मोतियों वाली माला भी प्रकाश में चमकती है॥ )
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥
( आप अपने साथ एक गदा, त्रिशूल और एक कुल्हाड़ा ले घुमते हैं।
और एक ही वार में अपने शत्रुओं को नष्ट करते हैं॥
पिंगलो, कृष्णा और छाया का पुत्र।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखों का नाशक॥
सौरी, मन्द, शनी – ये दस नाम आप ही के हैं।
हे भगवाव सूर्य के पुत्र – आप इन सारे नामों को गौरव प्रदान करते हैं॥
जब आप किसी से प्रसन्न या नाराज़ होते हैं।
आप एक ही क्षण में उसे ब्रह्माण्ड का भिकारी या राजा बना सकते हैं॥ )
पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥
( आप सरल से सरल काम को जटिल और कठिन बना सकते हैं।
और मुश्किल से मुश्किल काम आपके आशीर्वाद से सरल हो जाते हैं॥
भगवान् राम को अपना राज्य छोड़के वनवास जाना पड़ा।
राजा दशरत की पत्नी – रानी कैकेई के स्वार्थी इच्छाओं के कारण॥
बन में भगवान् राम एक भ्रामक हिरण द्वारा विचलित हो गए।
और इसी वजह से माँ सीता जो की माता प्रकृति का एक रूप थी – उनका अपहरण हो गया॥
भगवान राम के भ्राता लक्ष्मण भी बेहोश हो गए।
और इस वजह से भगवान राम की पूरी सेना डर से कांप उठी॥ )
रावण की गतिमति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥
( रावण अपने बुद्धिमत्ता से संपर्क खो बैठा।
और भगवान राम से लड़ने चल पड़ा॥
और सुनहरी लंका खँडहर में बदल गयी।
जैसे ही बजरंगबली ने लंका पर आक्रमण किया॥
जब राजा विक्रमादित्य शनि की दशा से पीड़ित थे।
चित्रित मोर ने एक बहुमूल्य हार को निगल लिया॥
भगवान् कृष्णा को भी चोरी करने के आरोपों को सहना पड़ा।
और इसी वजह से उनको बुरी मार भी सहनी पड़ी॥ )
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥
( विपत्तियों से भरी हुई शनि देव की महा दशा अवधि के दौरान।
भगवान कृष्ण को भी नौकर की तरह एक आम आदमी के घर में काम करना पडा था॥
आपकी दिव्य शक्ति के सामने झुकते हुए, शुद्ध भक्ति से भगवाव कृष्णा ने आपकी पूजा की हे शनि देव।
और केवल जब आप उनकी तपस्या से खुश हुए, भगवान् कृष्णा को वो सब कुछ मिला जो उन्होंने चाहा था॥
राजा हरिश्चंद्र को भी आपकी दशा के मुश्किल समय से गुज़रना पड़ा था।
वो अपनी सारी सुख और संपत्ति खो बैठा, और उसे अपनी पत्नी को भी बेचना पड़ गया॥
वो छोटे काम करने पर मजबूर हो गया।
और उसे एक मेहतर के घर नौकर का काम करना पड़ा॥ )
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥
( जब आप भगवान शिव के राशि चिन्ह में थे।
उनकी पत्नी सती आग में भस्म हो गईं॥
जब आपकी नज़र बाल गणेश पर पड़ी।
तब उनका चेहरा कट कर नष्ट हो गया॥
जब पांडवों पर आपकी दशा का साया पड़ा।
वो अपनी पत्नी द्रौपदी तक को एक शर्ट में खो बैठे और साथ साथ बाकी सब कुछ खो दिया॥
कौरव भी शनि दशा से बच नहीं पाए और वो भी अपनी बुद्धिमत्ता खो बैठे।
और पांडवों से लड़ने महाभारत के महा युद्ध में चल दिए॥ )
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥
( हे शनि देव, आपने तो सूर्य को भी अपने मुंह में निगल लिया।
और ये करने के बाद पाताल लोक में चले गए॥
और जब सारे देवताओं ने मिलकर आपकी पूजा की।
तब ही सुर्य शाश्वत अन्धकार से मुक्त हुआ॥
हे शनि देव, आपके साथ वाहन हैं।
हांथी, घोडा, गधा, हिरन॥
शूर, सियार और शेर – सारे ही तेज़ नाखून वाले जानवर।
और ज्योतिष इसी आधार पर ये घोषित करते हैं कि॥ )
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥8॥
( हांथी पर सवार हुए, शनि देव धन लाते हैं।
घोड़े पर सवार हुए, शनि देव सुख और संपत्ति लाते हैं॥
गधे पर सवार, शनि देव विभिन्न तरीकों के नुक्सान का अभिशाप लाते हैं।
शेर पर सवार, शनि देव धन, राज्य और प्रसिद्धि का वरदान देते हैं॥
सियार पर सवार, शनि देव ज्ञान, समझ और बुद्धि को नष्ट कर देते हैं।
हिरन पर सवार, शनि देव दर्द और मृत्यु का अभिशाप देते हैं॥
शूर पर सवार, शनि देव चोरी के आरोप लगने का श्राप देते है।
और इससे जो भी श्रपित होता है वो भिकारी समान बन जाता है॥ )
तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥9॥
( इसी तरह से, आपके पादों के भी चार अलग रूप हैं।
जो सोने, लोहे, चांदी और तांबे से बने हैं॥
जब आप लोहे के पैरों पर किसी के घर आते हैं।
तब उसकी सारी सुख संपत्ति को नष्ट कर देते हैं॥
तांबे से बने आप पैर वर्तमान स्थिति को जारी रखने का संकेत देते हैं, और चांदी के पैर बोहोत सारे लाभों का संकेत देते हैं।
इन सब में सबसे प्रतिभाशाली, आपके सोने से बने पैर , विभिन्न तरीकों की खुशियां लाती हैं॥
और जो भी इस तरह से आपकी प्रार्थना करता है, हे शनि देव।
उसे कभी भी आपकी दशा से पीड़ित नहीं होना पड़ता है॥ )
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥10॥
( आप अपने भक्तों के सामने अपने जादुई कार्यों का प्रदर्शन करते हैं।
और उनके शत्रुओं का नाश करके उनकी बलि चढ़ा देते हैं॥
जो भी आपकी पूजा करता है।
और सही विधियों का पालन करते हुए आपको प्रसन्न कर देता है॥
जो भी हर शनिवार पीपल के पेड़ को पानी देता है।
और आपके पदों के सामने दीप रखता है॥
मैं राम सुन्दर – प्रभु शनि का शाश्वत दास – ये घोषणा करता हूँ।
की उस व्यक्ति को सुख, संपत्ति और स्वस्थ्य निसंदेह प्राप्त होगी॥ )
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
( जो भी भक्त हर शनिवार, शनि देव का पाठ भक्ति भाव से करने को सदा तैयार होगा।
और जो श्री शनि चालीसा का पाठ चालिस दिनों तक करेगा, वो आसानी से भव सागर पार करेगा॥ )